राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के 71 साल पुराने नियमों में ऐतिहासिक संशोधन
रायगढ़ / छत्तीसगढ़। कहा जाता है कि अगर इरादे मजबूत हों तो बदलाव निश्चित है। यही कर दिखाया है छत्तीसगढ़ के फिल्ममेकर अखिलेश ने, जिनके अथक प्रयास और अटूट जुनून ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के 71 साल पुराने नियमों में ऐतिहासिक संशोधन करा दिया है। अब तक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार सिर्फ भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज भाषाओं में बनी फिल्मों को ही दिया जाता था, लेकिन अब स्थानीय बोली और भाषाओं में बनी फिल्में भी राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड की दौड़ में शामिल होंगी।
अखिलेश की यह प्रेरक यात्रा तब शुरू हुई जब उनकी छत्तीसगढ़ी फिल्म “किरण”, जिसने विश्वभर में 63 से अधिक पुरस्कार और गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में स्थान प्राप्त किया, राष्ट्रीय पुरस्कारों की सूची से सिर्फ इस कारण बाहर कर दी गई कि छत्तीसगढ़ी भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है।
इस अन्याय के खिलाफ अखिलेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति एवं सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को पत्र लिखकर अपनी बात मजबूती से रखी। उनकी दृढ़ता और सत्यनिष्ठ प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नियमों में संशोधन किया।
अब 72वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से एक नई धारा जोड़ी गई
“भारत की आठवीं अनुसूची में दर्ज भाषाओं के अलावा देश की विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाओं व बोलियों में बनी फिल्मों को भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हेतु पात्र माना जाएगा, बशर्ते संबंधित राज्य के गृह सचिव या कलेक्टर द्वारा उस बोली के प्रचलन का प्रमाण पत्र दिया जाए।”
यह संशोधन न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देशभर के उन कलाकारों के लिए ऐतिहासिक सौगात है जो अपनी स्थानीय बोली और संस्कृति में रचनात्मक कार्य कर रहे हैं।

अखिलेश ने कहा — “जब मेरी फिल्म को सिर्फ भाषा के कारण नजरअंदाज किया गया, तब मैंने प्रण लिया कि इसे आख़िरी सांस तक लड़ूंगा। आज मुझे खुशी है कि यह लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं रही — यह पूरे भारत के क्षेत्रीय कलाकारों की जीत है।”
अखिलेश के इस संकल्प और सफलता ने यह साबित कर दिया कि एक कलाकार का जुनून पूरे तंत्र को झुका सकता है। उनके प्रयास से आज भारत की हर क्षेत्रीय बोली, हर छोटे कलाकार और हर स्थानीय कहानी को राष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने का मार्ग खुल गया है।
