बिना वारंट, बिना महिला पुलिस, शराब की बदबू और अभद्रता का तांडव…
DVR से भी छेड़छाड़ ! पत्रकार की बेटी ने पूरे घटनाक्रम की वीडियो मोबाइल में किया कैद…
रायगढ़। रायपुर:- लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सत्ता के साये का शिकंजा अब और भयावह होता जा रहा है। “जनसेवक” कहलाने वाली पुलिस जब “जन-संवेदना” भूल जाए, तो उसकी वर्दी रक्षक नहीं, भक्षक बन जाती है। ऐसा ही नंगा नाच रायपुर में देखने को मिला जब “बुलंद छत्तीसगढ़” के संपादक मनोज पांडे के घर पुलिस ने आधी रात को धावा बोल दिया।
10 अक्टूबर की रात करीब 1 बजे, बिना किसी सर्च वारंट के, 12 से 15 पुलिसकर्मी कई गाड़ियों में सवार होकर पांडे के घर पहुंचे। उस वक्त घर में सिर्फ उनकी पत्नी और दो बेटियाँ थीं। न कोई पुरुष सदस्य, न कोई गवाह सिर्फ़ डरी-सहमी महिलाएँ और तानाशाही की ठंडी सांसें। पुलिस ने दरवाज़ा खोलने का दबाव बनाया। जब मना किया गया, तो मशीन से गेट का ताला तोड़कर अंदर घुस आई। यह जानते हुए भी कि घर में सिर्फ महिलाएँ थीं।

बिना वारंट, बिना महिला पुलिस, शराब की बदबू और अभद्रता का तांडव…
अंदर दाखिल होते ही कुछ पुलिसकर्मी, जो साफ़ तौर पर शराब के नशे में धुत्त थे, घर की तलाशी के नाम पर हर कमरे, हर अलमारी को टटोलने लगे। CCTV DVR से छेड़छाड़, भगवान के कमरे में जूतों सहित प्रवेश, और ऊपर किराए पर रहने वाली महिलाओं के कमरे में जबरन घुसपैठ किया सब कुछ कानून के नाम पर खुलेआम किया गया। जब मनोज पांडे की पत्नी ने विरोध किया, तो पुलिसवालों ने उन्हें धक्का दिया, चूड़ियाँ तोड़ीं, और अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल किया। सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि पूरे दल में कोई महिला पुलिसकर्मी नहीं थी केवल एक ट्रांसजेंडर और बाकी सभी पुरुष।
वारंट की बात मत करो, पुलिस का बेलगाम रवैया…
जब परिवार ने पूछा कि आपके पास कोई सर्च वारंट है? पुलिस ने बेहयाई से कहा कि “वारंट-वोटिस मत सिखाओ हमें, हम ऐसे ही आते हैं और ऐसे ही काम करते हैं।” यह बयान ही बताता है कि कानून अब पुलिस की जेब में सिकुड़ चुका है, और न्याय का सम्मान पूरी तरह रौंदा जा रहा है।
आधी रात का तांडव: भय और दमन का प्रतीक….
करीब ढाई घंटे तक यह उत्पात चलता रहा। और जब जाने लगे तो धमकी दी कि, “अभी तो जा रहे हैं, सुबह पूरी रायपुर पुलिस लेकर आएंगे, देख लेना कितना भारी पड़ेगा।” लोकतंत्र में यह सिर्फ एक परिवार पर हमला नहीं, बल्कि मुक्त पत्रकारिता की आत्मा पर हमला है। जब बिना वारंट के, बिना कारण के, बिना महिला पुलिस के, किसी पत्रकार के घर में रात के अंधेरे में पुलिस घुस सकती है तो यह सिर्फ दमन नहीं, ‘राज्य आतंक’ का साफ उदाहरण है।
प्रश्न जो हर नागरिक को विचलित कर रही
क्या वर्दी अब कानून से ऊपर हो गई है?
क्या महिला सुरक्षा के सारे नियम सिर्फ़ किताबों तक सिमट गए हैं? क्या पत्रकार होना अब अपराध है?…
मनोज पांडे की पत्नी और बेटियों ने जो भय झेला, वह किसी एक परिवार की पीड़ा नहीं बल्कि हर उस नागरिक की चेतावनी है जो आज भी लोकतंत्र में न्याय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भरोसा करता है। फिलहाल जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं, तो लोकतंत्र की सांस घुटने लगती है।।