
धूम धाम से किया गया भोजली विसर्जन गांव में रहा खुशी का माहौल
रायगढ़। छत्तीसगढ़ की एक खास परंपरा लोक पर्व भोजली का उत्सव! यह त्योहार न केवल हरियाली और कृषि का प्रतीक है, बल्कि दोस्ती और भाईचारे को भी मजबूत करता है।
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और शहरी इलाकों में भोजली पर्व का आयोजन धूमधाम से मनाया जाता है।वही आज लैलूंगा विकास खण्ड के मुसकट्टी गांव में भी कुंवारी लड़कियां और महिलाएं गेहूं या जौ के बीज से भोजली तैयार करती हैं। इन बीजों को टोकरियों में बोया जाता है और पवित्र स्थान पर अंधेरे में रखकर इनकी सेवा की जाती है।
इन अंकुरित पौधों की पूजा भोजली देवी के रूप में की जाती है युवतियाँ और महिलाएं भोजली सेवा गीत गाकर अच्छी फसल, सुख-समृद्धि और अच्छे सेहत की कामना करती हैं। यह त्योहार धान, गेहूं और जौ जैसी फसलों की अच्छी पैदावार का प्रतीक है।
गांव के नवखाई के दिन, यानी आज, इन भोजली को नदी और तालाबों में विसर्जित किया जाता है। लोग सिर पर भोजली की टोकरी रखकर पारंपरिक मंगलगीत गाते हुए झाँझ मंदार के थाप पर घाटों पर पहुंचते हैं। यह दृश्य मनमोहक होता है।

भोजली उत्सव में ‘मितान’ या ‘महाप्रसाद’ बनाने की अनोखी परंपरा भी है। इसमें महिलाएं या लड़कियां भोजली की बाली को एक-दूसरे के कान में लगाकर दोस्ती का रिश्ता बनाती हैं, जिसे ‘भोजली बदना’ कहते हैं। इस दोस्ती में वे एक-दूसरे का नाम नहीं लेते, बल्कि हमेशा ‘महाप्रसाद’ या ‘भोजली’ कहकर ही संबोधित करते हैं। यह रिश्ता जीवन भर चलता है।
यह पर्व महिलाओं की शक्ति, श्रद्धा और किसानों की मेहनत का प्रतीक है। यह संस्कृति, कृषि और सामाजिक एकता का संदेश देता है।
मुसकट्टी में भोजली उत्सव का भी आयोजन किया गया जिसमे गांव के नवयुक्त बैगा मनकेश्वर राठिया(गोंटिया)पटेल गांव कोटवार गांव के बुजुर्ग सज्जन और मातायें एवं पत्रकार रोहित चौहान के सांथ-सांथ वार्ड के पंचगण सामिल थे !
